विष योग, ग्रहण योग और लक्ष्मी नारायण योग का प्रभाव

ज्योतिष में कुछ खास योग (ग्रहों के विशेष संयोग) जीवन पर गहरा प्रभाव डालते हैं। विष योग, ग्रहण योग और लक्ष्मी नारायण योग के परिणामस्वरूप जातक के जीवन में कई सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव हो सकते हैं। आइए इनका विस्तृत विश्लेषण करते हैं:

1. विष योग (चंद्रमा + शनि का संयोग)

स्वभाव और प्रभाव

  • यह योग तब बनता है जब चंद्रमा और शनि एक साथ (आमतौर पर 10° के भीतर) स्थित होते हैं।
  • मानसिक और भावनात्मक प्रभाव:
    • निराशा और अवसाद: चंद्रमा भावनाओं और मन का कारक है, जबकि शनि इसकी ऊर्जा को सीमित और नकारात्मक बना देता है।
    • भावनात्मक दूरी: मातृ स्नेह या समर्थन प्राप्त करने में कठिनाई।
    • संपत्ति संबंधी समस्याएं: मां से जुड़ी संपत्ति में बाधाएं या देरी।

विष योग को बढ़ाने वाले कारक

  • अशुभ नक्षत्र: स्वाती, आर्द्रा, मूल, विशाखा, आश्लेषा और कृत्तिका नक्षत्रों में स्थित होने पर यह योग अधिक हानिकारक होता है।
  • शुभ नक्षत्र: पुनर्वसु, पुष्य, रेवती और पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र इस योग के प्रभाव को कम करते हैं।

भावों में स्थिति

  • 8वें, 12वें या 4थे भाव में: इन भावों में होने पर जातक आध्यात्मिकता या सन्यास की ओर आकर्षित हो सकता है, विशेषकर यदि नक्षत्र शुभ हों।

प्रभाव कम करने वाले कारक

  • यदि गुरु (बृहस्पति) का शुभ दृष्टि संबंध हो तो यह योग के नकारात्मक प्रभावों को कम करता है।

2. ग्रहण योग (सूर्य + राहु का संयोग)

स्वभाव और प्रभाव

  • यह योग तब बनता है जब सूर्य और राहु एक साथ (आमतौर पर 12° के भीतर) होते हैं।
  • जातक पर प्रभाव:
    • पिता से जुड़ी समस्याएं: पिता के स्वास्थ्य या दीर्घायु पर नकारात्मक असर पड़ सकता है।
    • कार्यस्थल पर चुनौतियां: करियर में बाधाएं और भ्रम पैदा हो सकते हैं।

भावों में स्थिति

  • 10वें, 6ठे या 3रे भाव में: इस स्थिति में यह योग जातक को सफलता और प्रसिद्धि दिला सकता है, लेकिन इसके साथ झूठा अहंकार और भ्रम भी होगा।
  • हानिकारक प्रभाव: यदि योग अशुभ भावों में हो, तो जातक को नेत्र समस्याएं, पिता से तनावपूर्ण संबंध और आत्म-धारणा में भ्रम हो सकता है।

प्रभाव कम करने वाले कारक

  • कुंडली में चंद्रमा यदि शुभ स्थिति में हो, तो यह मानसिक स्पष्टता लाता है। बृहस्पति की दृष्टि स्थिति को स्थिर और सकारात्मक बना सकती है।

3. लक्ष्मी नारायण योग (बुध + शुक्र का संयोग)

स्वभाव और प्रभाव

  • यह योग तब बनता है जब बुध और शुक्र एक साथ होते हैं। यह धन, विलासिता और रचनात्मकता का प्रतीक है।
  • सकारात्मक परिणाम:
    • वित्तीय स्थिरता और कलात्मक प्रतिभा का विकास।
    • संवाद कौशल और सौंदर्यबोध में वृद्धि।

परिणामों को प्रभावित करने वाले कारक

  • अशुभ राशियां: मेष, वृश्चिक और मकर में स्थित होने पर यह योग अपने सकारात्मक प्रभाव खो सकता है।
  • अन्य ग्रहों का प्रभाव: यदि मंगल की दृष्टि हो, तो यह योग टूट सकता है। लेकिन यदि गुरु की शुभ दृष्टि हो, तो यह फलदायक बन जाता है।

महत्वपूर्ण बिंदु

  • बुध और शुक्र के बीच की डिग्री की दूरी का ध्यान रखना आवश्यक है। यदि दोनों ग्रह एक-दूसरे से दूर हों, तो यह योग कमजोर हो जाता है।
  • यदि लग्नेश (आरोही का स्वामी) इन ग्रहों के अनुकूल न हो, तो यह योग कम प्रभावशाली होता है।

महत्वपूर्ण निष्कर्ष

  • यदि चंद्रमा, सूर्य और लग्नेश किसी भी प्रकार से पीड़ित हों, तो कुंडली के अन्य शुभ योग भी पूरी तरह फलदायी नहीं हो सकते।
  • हालांकि, ऐसी सामान्य कुंडलियां भी जातक को एक अच्छा जीवन प्रदान कर सकती हैं।
  • यदि लग्नेश और बृहस्पति शुभ स्थिति में हों, तो कुंडली का स्तर काफी हद तक सुधर सकता है।

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