यह एक दिलचस्प प्रश्न है और इसका उत्तर निश्चित रूप से मौजूद है। आइए इसे विस्तार से समझें।
दोष क्या होता है?
दोष, कुंडली में ग्रहों के विशेष योग या स्थितियों को कहा जाता है, जो व्यक्ति के जीवन में अशांति, गरीबी और दुर्भाग्य लाते हैं।
शुभ और अशुभ ग्रह
- शुभ ग्रह: बृहस्पति (जुपिटर), शुक्र (वीनस), चंद्रमा (मून), और बुध (मर्करी) को शुभ ग्रह माना जाता है।
- अशुभ ग्रह: शनि (सैटर्न), केतु (केतु), राहु (राहु), और मंगल (मंगल) को अशुभ ग्रह माना जाता है।
शुभ और अशुभ भाव
- शुभ भाव: 1, 5, 9, 4 और 10वें भाव। ये भाव धन, भाग्य और सुख प्रदान करते हैं।
- अशुभ भाव: 6, 8, 11 और 12वें भाव। ये भाव दुर्भाग्य, रोग और गरीबी लाते हैं।
11वां भाव कुछ कम अशुभ होता है, लेकिन इसे पूरी तरह शुभ नहीं माना जा सकता।
नक्षत्र (Constellations)
- अशुभ नक्षत्र: कृतिका, मूल, आश्लेषा, विशाखा, आर्द्रा।
- शुभ नक्षत्र: अश्विनी, अनुराधा, पुनर्वसु, स्वाति, पूर्वाफाल्गुनी, रेवती।
जब शुभ ग्रह अशुभ ग्रहों से पीड़ित होते हैं या अशुभ भावों (6, 8, 12) में स्थित होते हैं, तब दोष बनता है।
सबसे खराब योग कौन सा है?
कुंडली का सबसे महत्वपूर्ण ग्रह चंद्रमा (मून) है। यदि चंद्रमा कमजोर हो या अशुभ ग्रहों से पीड़ित हो, तो पूरा कुंडली प्रभावित होती है।
सबसे खराब योग
- ग्रहण योग
- स्थिति: चंद्रमा और राहु के बीच करीबी अंशों (डिग्री) का संयोग, विशेष रूप से वृश्चिक राशि (29°) या कर्क राशि के अंतिम अंशों में।
- प्रभाव: यदि यह 4th या 8th भाव में होता है, तो जातक जीवनभर गरीबी और कष्ट झेलता है।
- परिणाम: परिवार और घर से वंचित हो सकता है।
- विष योग
- स्थिति: चंद्रमा और शनि के बीच करीबी अंशों का संयोग, विशेष रूप से कर्क या मीन राशि के अंतिम अंशों में।
- भाव: यदि यह योग लग्न, 12th, 8th, या 10th भाव में हो और सूर्य व मंगल केंद्र में हो, तो यह अत्यधिक कष्टकारी होता है।
- प्रभाव: जातक को मानसिक, शारीरिक और आर्थिक समस्याएं झेलनी पड़ती हैं।
- शापित योग
- स्थिति: मंगल, शुक्र और राहु के बीच करीबी अंशों का संयोग, विशेष रूप से 4th या 7th भाव में।
- विशेष स्थिति: यदि शुक्र मेष राशि में नीच स्थिति में हो।
- प्रभाव: वैवाहिक जीवन नष्ट हो सकता है, जातक की चरित्र हानि होती है, और जेल जाने की संभावना बनती है।
- केमद्रुम योग
- स्थिति: चंद्रमा के 2nd और 12th भाव में कोई ग्रह न हो (राहु-केतु को छोड़कर)।
- खराब स्थिति: यदि शुक्र 8th भाव में (कन्या राशि में) हो और शनि 4th भाव में हो।
- प्रभाव: जातक जीवनभर मानसिक और आर्थिक कष्ट झेलता है।
महत्वपूर्ण टिप्स
- यदि गुरु (बृहस्पति) चंद्रमा को दृष्टि देता है, तो इन दोषों का प्रभाव कम हो सकता है।
- कुंडली में चंद्रमा की स्थिति को हमेशा ध्यानपूर्वक देखना चाहिए।